माँ और संतान का निर्मल रिस्ता

ममतामयी माता के चरण में,
नित जिसका अनुराग राहे,
युग युगांतर तक उस जन का,
कोई नहीं संताप रहे,

वह भाव नहीं अनमोल शब्द में,
जिस से हम गुणगान करें,
नित प्रेम रहे माँ चरण कमल में,
मेरा ये सौभाग्य रहे,

करुणामयी माँ के महिमा को,
चारों वेद बखान करें..,
सौभाग्य यहाँ जनमानस का,
माँ रूप मिली भगवन हमें,

कर(संतान) निर्वाह कर्म की अपने,
अपना धर्म निभाना है,
माँ के चरन कमल में अपना,
जीवन धन्य बनाना है,

महिमा माँ की है अनंत,
ये अनुभाग नही है,
ऐसे निर्मल रिश्ते का,
और कोई साध्य नही है,

माँ है, जो जीवन जंगल को,
उपवन सा कर देती है,
बिना स्वार्थ के, प्रेम धरा पे,
माँ ही केवल करती है !!

कोमल ह्रदय, करूणानिधि, 
दया का भंडार, दुनिया के सब मतावो को, 
बिश्वमित्र का प्रणाम..
 


तारीख: 05.06.2017                                    बिश्वमित्र तिवारी









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