माँ गंगा सी पावन है

 

माँ गंगा सी पावन है, माँ अतुलित मन भावन है।
माँ पुण्य है कई जन्मों का, माँ ऋतुओं में सावन है।।

माँ करुणा और दया की मूरत है।
माँ हर रिश्तों की एक जरुरत है।।

माँ  वो  अमूल्य  निधि,  जिसका कोई मोल नही।
माँ वो अमृत जल है जिसके जैसा कोई और नहीं।।

मेरे बोली का पहला शब्द,जो था वो माँ ही था।
चोट की हर सिसकी मेंं निकला लफ्ज़ माँ ही था।।

मै जब रोया वो सीने में,छुपकाना भूलेगा नही।
मुझे भूख लगने पर दूध पिलाना भूलेगा नहीं।।

मेरे हर जख्म में,माँ सबसे असरदार रही।
माँ घर आने में पहली पुकार की हकदार रही।।


मेरे ये कदम चलते पग पग माँ की देन है।
बदन में दौड़ रहा रग रग  माँ की देन है।।


माँ के आँचल की धौकन सा आराम कहीं नही मिलता।
गोद मे  सोकर चैन भरा  वो  जाम  कहीं  नही मिलता।।


माँ वो कुम्हार है जिसने हमको सुंदर बर्तन में ढाला है।
अकाली में  जीवन जी कर, हमको अच्छे से  पाला है।।

माँ के हाथों खाने सा,अमृतपान कहीं नही मिलता।
बचपन की उन डांटों सा परिणाम कहीं नही मिलता।।

सब बिकते देखा,माँ का दुलार बाजारी नही हुआ।
बचपन से अब तक का,सत्कार बाजारी नही हुआ।।

शीतल हृदय सेवा भाव का माँ का विचार बाजारी नही हुआ।
माँ का ज्ञान बाजारी नही हुआ, माँ पर अभिमान बाजारी नहीं हुआ।।

 


तारीख: 10.07.2017                                    गौतम पारस









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है