महा शपथ


राजनेताओं के दिखाए सपनों में
झूठ और फरेब का रंग ढूंढती है!
ये दुखियारी जनता ,जिसे वोट दिया
उसकी खोई शरम ढूंढती है !
कल तक जो थे खून के प्यासे,
उनके इस बेमेल मेल से
पैदा हुआ भरम ढूंढती है !
कसमें खाते थे जनता के,
सेवक बनकर सदा रहेंगे !
उन सत्ता लोलुप नेताओं की
'शपथ' का भटका 'पंथ' ढूंढती है!
गले मिले, क्या दिल भी मिले?
भागदौड़ की इस शतरंज में
पाला बदलता तुरंग ढूंढती है!
कल न जाने कौन किस के
विचारों की धारा में भीगा होगा,
फिसले तो कौन पहले डसेगा
वो छिपा हुआ भुजंग ढूंढती है !
गठबंधन के इस सर्कस में
जनता को जोकर जिसने बनाया,
राजनीति की माहिर चालों का
वो शातिर चतुरंग ढूंढती है !
फटे-हाल है जनता बैठी
देख के रोती झोली खाली
सत्ता के इस शीश महल में
लोकतंत्र की मखमली कुर्सी पर
बदरंग लगता पैंबंद ढूंढती है!
ये जनता है खोकर सब कुछ,
खुश रहने का मंत्र ढूंढती है !


तारीख: 07.12.2019                                    सुजाता









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