मन


 
विचारों के मंथन से

नहीं निकल पाया कोई मोती

बहुत देर दौड़ाये सोच के अश्व

पर राह की धूल ही मिली

ना मिली कोई मंज़िल

 

थक हार कर ज्यों ही बैठा मस्तिष्क

भागने लगा मन दूर सुदूर कहीं

सोचा ढूंढ लूँ कोई ठिकाना वहीं

मन पर लगा उड़ चला फिर कहीं...

 

बहुत कोशिश की मन को

कैद करने की

पर हर बार 'सोच'  पिंजरा बन रह गई

और मन आकाश हो गया...


तारीख: 27.08.2017                                    भुवन पांडे









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