मरीन ड्राइव में सूर्यास्त  

 

क्षितिज था द्रवित जहाँ
हलकी सी लालिमा समेटे हुए
नाविक अपने पतवार की तूलिका
जिसमें था पिरोये हुए |

डोलती हुई डालियों से 
छन  छन के धूप झांकती रही 
चकाचौंध थी नज़रें मगर 
उस कलाकार को निहारती रही |

राही पहुँच रहा था तट पर
उजाला कम पड़ने लगा था जब
बिखेर लाया था अपने संग लाल नारंगी रंग
धरती से गगन उसमे डूबा था तब |

बिजली की रौशनी से चमक उठा था
चंद्राकार किनारे का पग
उसपर आ बैठा सूर्यास्त का सूरज
हीरे जड़ित अंगूठी में ज्यों मूंगे का नग |


 


तारीख: 18.03.2018                                    ज्योति सुनीत









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