मेरा छोटा शहर

याद आते है वो खिलखिलाते दिन, वो मुस्कुराती राते,

मेरे छोटे से शहर की प्यारी प्यारी बातें।

 

कडकती दोपहरी में शोर मचाना,

वो पड़ोसी के मकान की घंटी बजाना।

 

गुडिया की शादी और पेड़ों पर झुलना,

अमरूद की टहनी पर चढ़ना, चहकना

 

छोटी को अंधेरे में डराना, हंसाना

भैया का नहाते हुये चिल्ला कर गाना।

 

स्कूल में चोरी से खाना खट्टी इमली,

परीक्षा के दिन पेट में उड़ती छोटी बड़ी तितली

 

वो फूलों के गहने, वो पत्तों के छाते,

कैसे भूलें वो महुआ के दिन और चंपा की रातें।

 

सुनते हैं वहां है अब ’’लाल रंग का साया’’

लौहनगरी में कैसा ये सन्नाटा पसराया।

 

कोई लौटा दो वो खनकते दिन और बेखौफ रातें,

मेरे छोटे से शहर की प्यारी-प्यारी बातें।।


तारीख: 05.08.2017                                    "नीलम"









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