मृत्यु अन्त नहीं आरम्भ है,
नव जीवन का ही शंक है,
मंगल होना दुःख को रोना,
ऐसे सब पाखंड का।
लता निराली गीत घटाएँ,
हर्षो और उल्लास का,
जीवन का जब चिंतन कीजे,
होगा तो कुछ आभास सा।
कैसी माया क्या है मोक्ष,
सोचा है कभी विचार का,
मानव का आरम्भ है अन्त,
और अन्त है नए आरम्भ का।
गीता वेद पुराण सभी में,
चिंतन है इस बात का,
मिलकर सोचो क्या उद्देश्य है,
मानव के जीवन सार का,
है भगवान की इच्छा क्या,
और क्या अर्थ इस बात का,
उसने हमको दिया है जीवन,
वो दाता हर सांस का।
ऋषि मुनि ने सोच विचारा,
देखा ऐसा पाथ सा,
जब लक्ष्य कोई न हो जीवन में,
तो क्या है लाभ समाज का।
अन्तहीन है सारा अम्बर,
अन्तहीन है सारा ज्ञान,
किन्तु उसका सार यहीं है,
है मृत्यु आरम्भ हर बात का।