केंचुली ओढ़े
मुंह खोले
निगल रहा
हमारे संस्कार,
संस्कृति को
नई पीढ़ी का अजगर।
हो चुका
मूल्यों का पतन
जिसने पाला पोसा
बड़ा किया
पढ़ाया लिखाया
सपने देखे
पथराई आँखों से,
सपोला बन उसी को डस लिया
माँ-बाप को वृद्धाश्रम में छोड़कर।
और हम
तमाशबीन
देख रहे सपोले को
घुस गया शिक्षालय में
नई पीढ़ी का अजगर
नकारा-निकम्मा बनकर
नकल करने, करवाने
आज मार दिया शिष्य ने
अपने ही गुरु को सपोला बनकर।
अपने पैरो तले
कुचल रहा आदर्श,
अश्लीलता की केंचुली ओढ़े
नई पीढ़ी का अजगर
मुंह खोले निगल रहा है
हमारे संस्कार, संस्कृति को
और हम तमाशबीन
देख रहे सपोले को।