प्रकृति जैसी प्रेमिका

सोचता हूं नित निकट कब से , प्रकृति जैसी प्रेमिका ,
मन हो स्थिर पेड़ जैसे , जो दे हरदम छाँव दिल से ,
वात जैसी बात से , मन मोह  ले मुझ रषिक का ,
ऐसी छाया चाहिए  , प्रकृति जैसी प्रेमिका ….

हृदय हो उसका हिमालय , हर उलझन झट वो टाले ,
नीर सा हर जगह जाकर , मुझको वो अपना बना ले ,
ऐसी शीतल चाहिए , प्रकृति जैसी प्रेमिका….

चन्द्र जैसे हो नयन , फलों से मीठे गाल ,
हँस अगर वो एक पल दे , मौसम भी हो जाये निहाल ,
ऐसी आभा चाहिए ,  प्रकृति जैसी प्रेमिका….

शान्त हो और हो सादगी , ध्वनि कडक सी धूप ना हो ,
गीत ऐसे वो जो  गाये , सारी दुनिया ठहर जाये ,
ऐसी शायर चाहिए ,प्रकृति जैसी प्रेमिका…..

मंद हवा सी मुस्कराहट , दिल में कर दे रुचिगुराहत ,
वाटिका के फूल सा , मन मेरा महकाती रहे ,
ऐसी खुश्बू चाहिए , प्रकृति जैसी प्रेमिका…..


तारीख: 06.06.2017                                    शशांक तिवारी









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