दिल है धङकन से रुठा, मोहे आघातों की पीङ सूहावे
कराल तरंगें उठ उठ गिरती, करने निश्चेष्ट मेरी तितिक्षा
छंदबद्ध मेरे प्रातःकाल की, छिनी प्रशांति तेरी ताल ने
तंत्र मंत्र बेकार भये मोरे, तूं ही दे तोहे भूलन की दीक्षा
स्वर्ण रँग हुआ बालू जैसे, सूखा सूखा इत-उत भटकत
भरदे मोको इस सावन में, कर कर हारी शून्य समीक्षा
यूं तङपे है जियरा पल पल, पंख कटी हो बैया विह्वल
कब उतरोगे मोरे अंगना, मांग रही तोरे दरस की भिक्षा
झांक जरा मोरे रक्तनयन तूं, मैं हुई बावरी दिग्भ्रम घूंमूं
तोहे ललकारुं प्रेमसमर में, दे मधुयामिनी छोङ परिक्षा
कौन दिशा तो बरसो बदरा, आज मिटादो सारी भदरा
हुई है हमरि नींद तिरोहित, धो दो श्रापित प्रेम प्रतीक्षा