प्रेम

___  प्रेम  - 1  ___

मैंने तुम्हें उस समय भी प्रेम किया 
जब स्थगित थी सारी दुनिया भर की बातें 
मैंने तुम्हें 
हर रोज प्रेम किया 
जिस दिन गिलहरी को 
बेदखल कर दिया गया पेड़ से
मैं गिलहरी के संताप के बीच 
तुमसे प्रेम करता रहा
जब एक औरत ने अपने अकेलेपन से ऊब कर 
बादलों के लिये स्वेटर बुना 
उस दिन भी मैं तुम्हारे प्रेम में था 
जब इस सदी के सारे प्रेम पत्र 
किसी ने रख दिया था ज्वालामुखी के मुहाने पर 
उस दिन भी मैंने तुम्हें प्रेम किया 
रेलगाड़ियों में यात्रा करते हुए 
कई शहरों को धोखा दे कर निकलते हुए 
मैंने तुम्हें प्रेम किया बहुत ज्यादा 
मैंने खुद से कई बार कहा
यह शहर जितना प्रेम में है नदी के 
मैंने तुम्हें प्रेम किया उतना ही  |


___ प्रेम  - 2 ___

उन दोनों के बीच प्रेम था 
पर वह प्रत्यक्ष नहीं था
उन दोनों ने एक दूसरे को कई साल फूल भेजे 
एक - दूसरे के लिये कई नाम रचे 
वे शहर बदलते रहे और एक दूसरे को याद करते रहे
वे कई-कई बार अनायास चलते हुए पीछे मुड़कर देखते थे
उन्होंने कई बार गलियों में झांक कर देखा होगा
फिर कई सदियाँ बीती 
वे दोनों पर्वत बने
पिछली सदी में वे बारिश बने 
इतना मुझे यकीन है 
इस सदी में वे ओस बने
फिर किसी सफेद फूल पर गिरते रहे  ।


तारीख: 07.09.2019                                    रोहित ठाकुर









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