बोलो कैसे तुमको भूलूँ

आज अचानक वायु ने जब मानस पट से धूल हटाई
शरद संध्या की वो बातें स्मृति नभ में तब मेघ सी छाई
भावों की  सरिता अविरल बहती ही रही थी 
जब प्रशांत मेरे होठों से तेरी चंचल अधरे थी मिल पाई
इन सब यादों को अंतर्मन से बाहर भी कर दूं
पर प्रेम जनित जो चिन्ह हृदय पर बोलो कैसे उनको धो लूँ
बोलो कैसे तुमको भूलूँ

अंबर और अवनी कह लो या सागर तट के हम दो किनारे
ग़लती न मेरी न तेरी दोनो हैं नियती से हारें
प्रेम न बाधक बने मेरा न कष्ट वो तुमको पहुचाएँ
लो मुक्त किया है आज तुम्हे मैने अपने बंधन से सारे
प्रत्यक्ष खड़ा जब देख चुका खोते अपने सब चित्रों को
फिर बटोर सब रंगों को कैसे अपने जीवन में घोलूं
बोलो कैसे तुमको भूलूँ

वो स्पर्श तेरा वो मधुर हँसी, वो साथ बिताए अगणित क्षण
अधिकार कहाँ उनपर मेरा कल तक था जिनमे अपनापन
यादें ही तो शेष हैं अब, कल शायद वो खो जाएंगी
किंतु जीवन के हर पग पर तुमको फिर ढूंढेगा मन
अंतिम एक मिलन की भेंट प्रिय तुझसे मैं क्या माँगूँ
एक बार बस दृष्टि करों से तेरा कोमल चितवन छू लूँ
बोलो कैसे तुमको भूलूँ, बोलो कैसे तुमको भूलूँ
 


तारीख: 18.06.2017                                    कुणाल









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