सच्चाई का आईना

सच का आईना दिखाने की कोशिश करती हूँ,
सोये हुए को जगाने की कोशिश करती हूँ।

सच लिखने को अपना धर्म समझती हूँ,
अपना धर्म निभाने की कोशिश करती हूँ।

जल कर राख हो जाएँ बुराई इस ज़माने की,
अच्छाई के शोले भड़काने की कोशिश करती हूँ।

जात पात धर्म मजहब की बातों से ऊपर उठकर,
नफरत की दीवार गिराने की कोशिश करती हूँ।

अमीरी गरीबी को पीछे छोड़ प्रेम बढ़ाने को,
इंसान से इंसान को मिलाने की कोशिश करती हूँ।

हर रोज मैं एक नई जंग का आगाज करती हूँ,
नारी को सम्मान दिलवाने की कोशिश करती हूँ।

लेखनी को रुकने थमने नहीं देती हूँ कभी भी,
हकीकत यहाँ सामने लाने की कोशिश करती हूँ।

मैं अपने कर्म से विमुख हो नहीं सकती कभी,
हर पल ज्ञान प्रकाश फैलाने की कोशिश करती हूँ।

अपने मूर्ख अज्ञानी मन में ज्ञान की प्यास जगा,
अमृत ज्ञान से उसे बुझाने की कोशिश करती हूँ।

बिना थके बिना रुके यूँ अपने मार्ग पर चलते जाना है,
सच की राह पर चलने चलाने की कोशिश करती हूँ।

चलाकर कलम "सुलक्षणा" फर्ज निभा रही हूँ यहाँ,
मुरझाये मन को हर पल खिलाने की कोशिश करती हूँ।


तारीख: 05.08.2017                                    डॉ सुलक्षणा









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है