शायद फिर इश्क़ मुकम्मल हो जाए

जब नैन मेरे हो जाएँ सजल
लिखने लगूँ अश्कों से ग़ज़ल
मेरा हर्फ़ हर्फ़ तू बन जाये
शायद फिर इश्क़ मुकम्मल हो जाये।

मेरी आह की तुझको खबर लगे
फिर सांस भी अपनी जहर लगे
दिल जोर जोर से घबराये
शायद फिर इश्क़ मुकम्मल हो जाये ।

मैं रोज़ कहूँ तुझको अपना
तू रोज कहे मुझको सपना
ये सपना भी सच हो जाये
शायद फिर इश्क़ मुकम्मल हो जाये ।

मैं ओस बनू गिरूँ तुझपर
बनू भौंरा और फिरू तुझपर
तू फूल वही फिर बन जाये
शायद फिर इश्क़ मुकम्मल हो जाये ।

जो ख़ाब में तू न आये मेरे
नयन नीर भर जाये मेरे
तब सांस वही पे ठहर जाये
शायद फिर इश्क़ मुकम्मल हो जाये ।

जिस पल तेरा नाम न लूँ
मैं नाम तेरे गर जाम न लूँ
पैमाना अश्क़बार बन जाये
शायद फिर इश्क़ मुकम्मल हो जाये ।

किसी को लिखूं जो ताजमहल
मंजूर न हो वो तुझको ग़ज़ल
मुह फुलाकर तू बैठ जाये
शायद फिर इश्क़ मुकम्मल हो जाये ।

यादों में तेरी जलने लगूं
ख़ाबों को यूँही गढ़ने लगूं
और रंग तेरा ही चढ़ जाए
शायद फिर इश्क़ मुकम्मल हो जाये ।
 


तारीख: 18.03.2018                                    ऋषभ शर्मा रिशु









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