बनाता हूँ हर बार ख्वाबों में तस्वीर तेरी
पानी में कोई लकीर बनती है जैसे
क्षणिक छलावा ..
पल भर का बनना ,पलभर में मिटना,
उसूल हो जैसे उसका.....
देता है सुकून मुझे यह बनना और मिटना,
तेरा नजरों से दूर जाना लगता है
जैसे मुद्दत हुई तुझसे मिले.....
तेरा साथ होना ही ताकत है मेरी,
अब तो लत सी लग गई है साथ रहने की....
सुना करता था मैं ये बात लैला-मजनू की
कहानी में और हँसता था इन पर ....
आज खुद को उसी कहानी का पात्र बना पाता हूँ ,
देख रहा हूँ उनको हँसता हुआ खुद पर ...
समझ रहा हूँ मुहब्बत के जज्बात औ जुनून को ,
जो हिलोंरें ले रहा है दिले समन्दर में,
जिसकी वजह है यह तेरी तस्वीर.....
तेरे जाते ही याद आई मुझे इसकी ,
जो गर्द की ओढ़े चादर शिद्दत से
मुझे मुस्कुराते हुए निहार रही है.
अब मेरे खामोश,तन्हा लम्हों को
काटने का नायाब नुख्सा है यह तेरी तस्वीर....
जब मैंने इसे छुआ तो आनन्द से
भर उठा " मनु " भीतर तक ,
इस पर जमी रेत को हटाया
आनन फानन में तो सारी रेत लिपट
गई मेरी कठोर किन्तु मजबूत उँगलियों से,
चादर हटते ही रेत की मुझे अहसास हुआ
कि तुम कितनी खूबसूरत हो .....
जब तक तुम नहीं आ जाती लौटकर
तब तक मेरे साथ है यह तेरी तस्वीर.....