तुम मौन मेरा चिह्नित कर लो……
सुप्त धङकनों की क्रमिकता, सुप्त ह्रदय निःस्पंदता
भँवर नैया, खोया खिवैया, है हर और अक्षत अंधता
क्रुद्ध दर्पण, विद्वेषित शिराऐं,, द्वंद्व मेरा स्वद्रोह से है
वृंदगान कानों में चूभता, इक भारीपन सा मोह से है
तुम मौन मेरा चिह्नित कर लो……
है डूबा ज्ञातव्य, सूखी वैतरणी, ज्ञान सोया है सहरा
मूढ करें टीका, करबद्ध ज्ञानी,, प्रबुद्ध हूआ है बहरा
मूर्छित चिन्मय, मूर्धा रोये,, पुकार रहा कातर क्रंदन
सूखा चंदन-रुठा वंदन, गाय रहा अशुभ अभिनंदन
तुम मौन मेरा चिह्नित कर लो……
सत्य प्रकंपित, प्रसाद झूठा, कहां गया आभामंडल
द्यूतसभा सज बैठी है, नवकिर्ति रचेगा फिर से छल
अंतर्भूत प्रकट होंगें,, रजनी नग्न रूप सन्मुख होगी
उद्गार मेरे न मैले होंगे, जो पशुता सभा प्रमुख होगी
तुम मौन मेरा चिह्नित कर लो……
मलिन हुई है आत्मा, साधना भी सबकी जूदा जूदा
खुद से है खुद बिछङा, तो कौन खोजे असल सुधा
शब्द मेरे अब शब्द नहीं,, शब्दों का अभिप्राय छूटा
किन मंत्रों का अर्ध्य चढाऊं, रवि जो वसुधा से टूटा
तुम मौन मेरा चिह्नित कर लो……
मौन कैवल्य, मौन अमृत, मौन जी़नत, मौन ज्योति
गहन अंधेरा जब छाये,, मौन ही देता ज्ञान के मोती
मौन मेरा बस मौन नहीं है,, मौन सृजता मौनालाप
हो शमसीर चाहे तेरे शब्द भले……
‘ना सह पायेंगें मौनाताप’, ‘ना सह पायेंगें मौनाताप’
तुम मौन मेरा चिह्नित कर लो……
तुम मौन मेरा चिह्नित कर लो……