तुम्हारे प्रेम में सभ्य बन रहा हूँ

तुम्हारे प्रेम पर कितना तो संदेह किया मैंने
शायद तुमने भी सवालों के जवाब देते-देते
'प्रेम' शब्द को भुला दिया

अब मेरी-तुम्हारी बातों में
'प्रेम' भूले-बिसरे ही आता हो
मैं अपनी अतिशय समझदारी के गर्व से
तुम्हें भावुकता त्यागने की सलाह देता रहता हूँ

तुम जब-जब मुझसे बात करती हो
शब्दों का चुनाव ऐसा होता है कि
'प्रेम' न आने पाए बीच मे
मैं निश्चिंत हो गया हूँ कि अब
'प्रेम' बार-बार मेरी बुद्धि को आहत न करेगा

टाइपिंग के ज़माने में जब तुमने मुझे
कई बार कलम और डायरी उपहार में दिया है,
बार-बार कहना कि कागज़ पर लिखा करो
तो मैं नाराज़ हुआ,
चिढ़ा भी
कि तुम मुझे ज़माने के हिसाब से नहीं चलने दोगी
तुम चुप थी

आज तुम्हारी दी हुई कलम से कविताएं लिख रहा हुँ
उन्हें दुलार भी मिल रहा है
तो सोचता हूँ कि
जिस दौर में हाथ से लिखने को 'हार्ड वर्क', 
पन्नों पर उतरी कविता 'हार्ड कॉपी' कही जाती हो
तुमने मुझे 'हार्ड टूल्स' क्यूं दिया

सोचता हूँ तो महसूस हो रहा
कि तुमने मुझसे प्रेम करना छोड़ा नहीं है
तुम्हारे तरीके बदल गए हैं
शायद मैं यांत्रिक हो रहा हूँ,
तुम मुझे मेरी सभ्यता से जोड़ रही हो,
मुझे लिखना सिखाने में जितने लोगों का योगदान रहा है
उनके प्रति मुझे कृतज्ञ बना रही हो
सीखने की उन सभी प्रकियाओं को मुझमें बचाने की कोशिश में हो तुम
....शायद मुझे इंसान बनाये रखने की कोशिश में हो!
....शायद इनसे तुम 'प्रेम' को वापस खिलता देखना चाहती हो!

तो सुनो! हे प्रिय!
मैं सीखने की उन सभी प्रक्रियाओं को याद करता हूँ
जिन्होंने मुझे लिखना सिखाया उनकी स्मृति भी रह-रहकर आने लगी है
मेरी लिखावट और सुंदर हो गई है
मैं कुछ और सुंदर इंसान बन रहा हूँ
तुम मुझे 'प्रेम' लिखना सीखा दो!
 


तारीख: 16.10.2019                                    आशीष कुमार तिवारी









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