यकीन नहीं होता

 यह कविता वर्तमान समय को प्रदर्शित करती है । इसके माध्यम से कवियित्री कहना चाहती है कि कैसे लोग क्षण -भर में अपनी सोच को , दृष्टिकोण को ,मानवता को, सहज प्रीति को भूल जाते हैं ।और चिर सौंदर्य की अभिलाषा में , अवसाद-अँधेरों से मुक्त होने के लिए अमानवता, पशुत्व,और अनीति को धारण कर लेते है । इसी भाव को प्रदर्शित करती है यह कविता "यकीन नहीं होता"

सचमुच-
यकीन नहीं होता 
आम जन की सोच पर 
उनके दृष्टिकोण पर
और उनकी वास्तविक स्थिति पर 
क्षण भर में चूर 
मानवता पर 
हृदय में बसी सहज प्रीति पर
विवेक युक्त बुद्धि पर
सचमुच- 
यकीन नहीं होता

 

वक्त के ताबीज में कैद 
लौह-जंजीरों पर
जिसमें हर कोई धसता है
कोई मजबूर हो कर
तो कोई बैचेन हो कर 
कोई आदतन 
अपनी अच्छाई 
और आत्मा की सच्चाई 
को छोड़ देता है 
सचमुच- 
यकीन नहीं होता

 

कि कैसे मानव 
अवसाद-अँधेरों मे डूब कर 
चिर सौंदर्य की अभिलाषा में 
     अमानवता 
      पशुत्व 
      अनीति 
को धारण कर लेता है 
सचमुच-
यकीन नहीं होता 


तारीख: 21.10.2017                                    आरती









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है