न जाने किस दिशा से ये घनघोर उदासी छायी है
न जाने मेरे जीवन मैं कैसी तन्हाई लायी है
इंद्रधनुष के रंग भी अब फीके-फीके से लगते है
खिलते हुए प्रसून भी अब बेजान सरीखे लगते है
तुमसे विरह की वेदना ही हमें इतना तड़पाती है
फिर भी ये जिंदगी हमें रोज नए रंग दिखलाती है
न जाने जिंदगी अब हमें किस मोड़ पर ले आयी है
न जाने किस दिशा से ये घनघोर उदासी छायी है
न जाने मेरे जीवन मैं कैसी तन्हाई लायी है
रिश्तो के धागे भी अब टूटे-टूटे से लगते है
मदिरा के प्याले भी अब फूटे-फूटे से लगते है
कोयल की कुकनी भी अब मन को नहीं भाती है
बासुरी की धुन भी अब फीकी सी रह जाती है
न जाने किस गुनाह की सजा हमने ऐसी पायी है
न जाने किस दिशा से ये घनघोर उदासी छायी है
न जाने मेरे जीवन मैं कैसी तन्हाई लायी है