उलझा हू इस दुनिया मे ,अब छुटकारा चाहता हू ,
अध्यात्म का जीवन मे,अब सहारा चाहता हू।
ये जो रंग हैं दुनिया के ,ये बदलते बहुत हैं।
मुझे यकीन है यहाँ गिरकर भी,संभलते बहुत हैं।
अपने मन मे अब ज्ञान का उजाला चाहता हूू ,
अध्यात्म का अपने जीवन मे सहारा चाहता हू।
हर रास्ता मे्रे जीवन का सब ,तुझ तक ही जाता है ,
अस्थायी सुख मे्रे मन मे ,न कोई अब समाता है।
स्वार्थ से लाभ से अब किनारा चाहता हू ,
अध्यात्म का अपने जीवन मे अब सहारा चाहता हू।
खुद के सुखों को खोज ना मैन छोड़ ही दिया है ,
रास्ता तुझ तक अपना,मैन जोड़ लिया है।
तू रहता कहां है ,उस धाम का ईशारा चाहता हू ,
अपने जीवन मे अध्यात्म का सहारा चाहता हू।
मुझको तेरे गुणों मे डूब जाना है ,
संसार मे मानवता का एक धर्म निभाना है ,
उस धर्म पेे मै कुछ अपना अधिकार चाहता हू ,
अपने जीवन मे अध्यात्म का अवतार चाहता हू।
रंग- वेरंग लोग दुनिया के जब तूने सजाये हैं ,
सुख दुख के मेले जब तूने ही लगाए हैं।
उन मेलों को कुछ दूर से देखना चाहता हू ,
अपने जीवन मे अध्यात्म को सीखना चाहता हू।
एक दूसरे मे सबको उऌ झाकर जो तूने खेल खेला है ,
खुद से ही इस दुनिया का,तूने ध्यान मोड़ा है।
अब मै अपनी तरफ तेरा ध्यान चाहता हू ,
हाँ मै अध्यात्म चाहता हु अध्यात्म चाहता हू।