अखबार

अख़बार में कल के समाचार,
मानवता सर्मसार,
बुद्धिजीवी संसार,
फिर भी मानसिक रूप से
बीमार...

बूढ़े माँ-बाप की हत्या,
छोटी बच्ची का बलात्कार....
दुसरे पन्ने पर,
एक बाबा का चमत्कार,
अपराध ही सबसे बड़ा कारोबार..
पन्ने पलटते रहे..
विदेशी घुशपैठ,
खाने पर बढ़ता वैट,
रोज धराशायी होते जेट,

अभी आधा अखबार ही पलटा था..
सारा देश भ्रस्टाचार में जल रहा था,
कोयला भी काला धन उगल रहा था...
सडको पर मौत बाँटते रईसजादे...
आधे बिदेशी देशी आधे..
क्रिकेट के छक्के, फुटबॉल के गोल,
अभिनेताओ के बदलते रोल..

मंगल पर जिंदगी तलासते विज्ञानी,
धरती पर ख़त्म होता पानी..
आज के अखबार के पन्ने ताज़े थे..
पर खबरें पीली पड़ चुकी थी..


तारीख: 18.06.2017                                    समीर मृणाल









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है