जब चाह न हो कोई मन में,
जब कोई राह न हो समक्ष,
अक्स हो कुछ धुँधला धुँधला,
जब हो न कोई पक्ष विपक्ष,
शख्स कोई दूर खड़ा आंसू बहाता है,
उत्साह जिस मोड़ पे ख़त्म हो जाता है,
गर्मी बचती नहीं अंदर,
बदन ठंडा हो जाता है,
होता है ऐसा कुछ,
जब अंतिम समय आता है॥
जब साँसे डगमगाती है
जब पीड़ा बदन में समाती है ,
जब चुनाव श्वास का होता है,
आँखों में अँधेरा
दर्द सा दिल में होता है॥
शंख काल का बजता है.
सेज लकड़ियों का सजता है,
कानों में भूली बिसरी याद लिए दिल परछाइयों से लड़ता है।।
रहता याद कोई मलाल अभी भी दिल में,
पास नहीं जो उनका चेहरा सामने ही मंडराता है,
हुई थी जो कोई भूल कभी,
याद कर उसे दिल आज भी पछताता है||
वक्त ने कब सिमटी चादर याद नहीं,
किताब के अाखिरी कुछ बचे हैं पन्ने,
अब कोई राज़ नहीं,
पास मेरे कोई अब आस नहीं,
बची गिनने को भी अब कोई श्वास नहीं।।
समक्ष देवलोक मंडराता है,
लगता कोई लेने को आता है,
मुक्त सब पीड़ा से यह तन हो जाता है,
धीरे धीरे जीव तू हवाओं में खो जाता है।