बचपन के वो तीन पन्ने

कल जो खोला मैने, यादों की वो हसीन किताब,
पहला पन्ना था सब से अनमोल, जिसका था न कोई हिसाब।।

पल्लू में छुपाकर, मेरी भूख मिटाती , लोरी सुनाती हुई थी मेरी माँ।
मुझ में अपना बचपन ढूंढती, खुशियाँ देती हुई थी मेरी माँ।।

बचपन के वो सारे खिलौने, टूट कर बिखर गए है जो अब।
दुसरे पन्ने से याद आया, पापा के तोफे थे वो सब।।

स्कूटर पे आगे खड़े रहना, याद आता है आज बहुत।
रोज़ बड़ी किटकैट लेकर आना, प्यार का एहसास दिलाता है अब।।

भूल कर भी न भुलाया जाये, तीसरे पन्ने की हसीन यादें।
बचपन मेरा गुज़रा जिसके संग, लड़ते झगड़ते गुज़री है रातें।।

गोद में लिए मुझे सुलाती, माँ का दुलार देती थी दीदी।
पापा से जब मार पड़े मुझे, ज़ोर ज़ोर से रोती थी दीदी ।।

रिश्तो के  पन्ने तो बहुत भरे है, पर ये तीन पन्ने सबसे अनमोल है।
जीने के मायने सिखाता मुझे, ये तीन पन्नों की डोर है ।।


तारीख: 11.06.2017                                    विलीना चौधरी









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