बिना श्रंगार के तू मुझ को अच्छी नही लगती

बिना श्रंगार के तू मुझ को अच्छी नही लगती
बिना चूडियों की खन-खन के
बिना पायल की छन-छन के
तेरा आना और जाना मुझे अच्छा नही लगता

बिना श्रंगार के तू मुझ को अच्छी नही लगती
ना हँसती होठ की लाली
ना चमकता आँख का काजल
तेरा यूँ ही मुस्कुराना मुझे अच्छा नही लगता

बिना श्रंगार के तू मुझ को अच्छी नही लगती
बिना माथे की बिन्दी के
बिना गजरे के बालों में
तेरा आईने में इतराना मुझे अच्छा नही लगता

बिना श्रंगार के तू मुझ को अच्छी नही लगती
ना जोडा लाल चुनर का
ना मेहदीं लाला हाथों में
तेरा मुझको अपना बताना अच्छा नही लगता

बिना श्रंगार के तू मुझ को अच्छी नही लगती
बिना चेहरे पर लज्जा कें
बिना प्रेम के ह्दय में
तेरा जिदंगी में मेरे आना मुझे अच्छा नही लगता

बिना श्रंगार के तू मुझ को अच्छी नही लगती


तारीख: 02.07.2017                                    रामकृष्ण शर्मा बेचैन









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