चांदनी

वह चुपके चुपके धीरे धीरे
बिन आहट आई मेरे तीरे
अहा मेरी प्रिया मेरी चांदनी
आभा बिखेरती नव यौवनी
उसकी आभा से दमका मुख
जो ठहर गयी वो मेरे सम्मुख
वो चारु चंद्र की चंचल किरणें
अंधियारें से करती परिणय
विनष्ट तिमिर छितराती उदय
अकुचित मन में जगा प्रणय
छन छन दुल्हन बन लेती फ़ेरे
अस्पर्श उतर गई वो मन में मेरे
वह चुपके चुपके धीरे धीरे
बिन आहट आई मेरे तीरे
नयनों की पाँखों से मौन मिलन
नीरव पद से करती ह्रदय स्पंदन
कौमुद्री उजियारी अप्सरा जैसी
धवल स्वेत चांदनी मेरी प्रेयसी
नितांत समीप वह मेरे शयन
ह्रदय आलिंगन वह बसी नयन
घन के घने आँचल को चीरे
कर अशक्त हर बाधा जंजीरें
वह चुपके चुपके धीरे धीरे
बिन आहट आई मेरे तीरे
अहा मेरी प्रिया मेरी चांदनी
आभा बिखेरती नव यौवनी


तारीख: 16.10.2019                                    नीरज सक्सेना









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है