धीरे धीरे कदम बढ़ा रही थी वो

कुछ सकुचाती, कुछ शरमाती, 
कुछ इठलाती, मंद मंद मुस्काती जा रही थी वो...
धीरे धीरे कदम बढ़ा रही थी वो..!

""""जिंदगी की सुनहरी धूप छाँव से बेखबर,
अपनी रेशमी काली, जुल्फों को कभी समेटकर,
कभी बिखेर कर सहला रही थी वो....!
धीरे धीरे कदम बढ़ा रही थी वो.....

"""मगन थी आने वाले कल के सुनहरे ख्वाब में,
बीते हुए कल को पीछे छोड़ जा रही थी वो....!
""""दिल में लेकर अपने अरमानों का समुंदर,
लहराती, बलखाती, आगे बही जा रही थी वो...! 
धीरे धीरे कदम बढ़ा रही थी वो.....

""""रोका बहुत उसको, टोका बहुत उसको,
पर अपनी ही धुन में मगन, प्रीत की डोर से खिंची जा रही थी वो......!!!!..!
 


तारीख: 01.07.2017                                    नूतन अग्रवाल









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