दूर के ढोल सुहावने होते हैँ

जो है, उसका मोल नहीं
जो नहीं है, उसके दीवाने होते हैँ।
बस दूर के ढोल सुहावने होते हैँ

बचपन में, जवानी एक सपना,
जवानी में, बचपन एक टूटा सुहाना सपना
बस वर्तमान से तेरा बैर
वाह रे मानव! तेरी प्रकृति का अजब है खेल।

असंतोष ह्रदय में, स्थिरता का नाम नहीं ,
जो आज है सर्वोपरि, तो कल धूरि समान वही
कल तक थी जो कामना, गर पूरी हुई तो मोल कहाँ,
असीमित मन की इच्छाएं, अधूरी रहती सर्वदा
जितना हो उतना कम है, नित नये स्वप्न संजोते है
जो है, उसका मोल नहीं

जो नहीं है, उसके दीवाने होते हैँ।
बस दूर के ढोल सुहावने होते हैँ। 


तारीख: 18.10.2017                                    शुभम सूफ़ियाना









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