इक रोज़ तो जाना हैं


मौज कर ले ग़ाफ़िल
इक रोज़ तो जाना हैं।
अहले जिंदगी का यह
फ़लसफ़ा पुराना हैं।
न आज की ख़बर
कल किसने जाना हैं।
वक्त की घड़ियों में
लम्हा लम्हा अंजाना है।
वज़ह हालात, रोना
तो कभी मुस्कराना हैं।
अहले जिंदगी का यह
फ़लसफ़ा पुराना हैं।
ग़र खुशियां हैं साथ
तो ग़मो का याराना हैं।
जो जैसी भी कटे
इसे हरहाल में निभाना हैं।
मौज कर ले ग़ाफ़िल
इक रोज़ तो जाना हैं।
अहले जिंदगी का यह
फ़लसफ़ा पुराना हैं।
 


तारीख: 16.11.2019                                    नीरज सक्सेना









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