गाँवों के कंवारे लड़के

 

सुनों.! मृगनयनी  
तुम इन दिनों कविता क्यों नहीं करती हो.? 
सचमुच कहीं इतनी व्यस्त रहती हो.?
तकरीबन तुम्हारी एक वर्ष पूर्व लिखी हुई 
वो एक मात्र कविता 
मैं रातों को जाग-जागकर पढ़ा करता हूँ
और तुम्हारी नई कविताओं का इंतजार किया करता हूँ।

तुम मुझे नित फोन पर कह देती हो कि,“ मैं इन दिनों बहुत ही व्यस्त हूँ,तुम्हारे लिए कविता नही कर पाती।”

इस तरह तुम रोज बहाना बनाती हो
ऐसा कहो न,“अब तुम्हारे लिए कोई कविता नहीं करूँगी।” 
इसमें क्या हरज है.?

मैं तुम्हारी वो एक मात्र कविता पढ़ते-पढ़ते 
जीवन व्यतीत कर दूँगा
क्या तुम ऐसा कर पाओगी.? 
तुम्हारी वो कविता 
मेरे हिये के आँगन में 
रंग-रंगीले प्रेम के मांडणे बना रही है।

मैं जब खेत की मेड़ पर बैठकर 
तुम्हारी कविता को 
तुम्हारे साँवले गालों की तरह 
स्पर्श करता हुआ 
खेत की गीली रेत सुगंधता हुआ
भोप्पे की तरह पढ़ रहा होता हूँ 
तो किसान और उसकी धण 
खेत में सूड़ करना छोड़
एक दूसरे की बाहों में भरकर 
बड़े ही तन्मयता से कविता सुन रहे होते है।

विश्व की सभी कविताओं में से 
सिर्फ़ तुम्हारी ही कविता मुझे कंठों याद है

जब तुम्हारी कविता का कागज़ 
मेरी दो उँगुलियों के मध्य फंसा रहता है
तो मरुधर की मधुर-मधुर समीर 
उसे जी भरकर चूमती हुई सिमट जाना चाहती है।

यदि तुम सींव की उस तरफ़ नहीं होती 
तो तुमसे रोज कविता करने को कहता
किसी खींप की ओट में बैठकर 
पंखेरूओं के कलरव के बीच 
बीड़ी के सुट्टों के साथ तुमसे रोज कविता सुनता।

किसी एक दिन:,तुम्हारे शब्दों को 
गोबरैला गोल करता हुआ 
धीरे-धीरे,खेतों,धोरों,गाँवों,गलियों,गुवाड़ों  
और गाँवों के कंवारे लड़को की
सुगंध समेटता हुआ 
सींव के ठीक उस तरफ़ पहुँचा देगा
जहाँ तुम रहती हो
ताकि:,तुम्हारे भीतर अनेकों प्रेम कविताएँ जन्म सकें।


तारीख: 22.08.2019                                    संदीप पारीक निर्भय









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