गरीब के सपने


आज हाथ ज़रा तंग हैं
मज़बूरियों से जंग हैं
कल बाज़ार माफ़िक़ होंगे
दाम भी सब वाज़िब होंगे
तुम्हे हर सामां ला दूंगा
खुशियों से दामन भर दूंगा
ज़ेब में ज़रा पैबंद लग जाये
ख़र्च बेवज़ह का थम जाए
तुम फिर झोलियां देना मुझे
और बेटे...
जो तुम माँगोगे ला दूंगा तुझे


कल सारे सपने अपने होंगे
न पूछो की कितने होंगे
बस उस कल का इंतजार करो
तब तक कुछ नए स्वपन भरो
कल जीवन को रंगों से
दुनियां की नई उमंगों से
मैं कर दूंगा नवसूर्य उदय
और बेटे..
दिलवाऊंगा सब कुछ मैं तुझे


यह रात घनी पर छोटी होगी
ऊषा की जब दस्तक होगी
यह अंधियारे मिट जाएंगे
मिलके तब सब बाहर जाएंगे
है क्या ज़रूरत सब पता मुझे
बेटे तब..
दिलवाऊंगा सब कुछ मैं तुझे


कल की आस निराली है
बस आज ज़रा कंगाली है
यह बीते तो बाज़ारो को
दुनियांभर के त्योहारों को
मैं अपने घर ले आऊंगा
तुझसे जरूर मिलाऊँगा
तुम अपनी पसन्द बताना मुझे
बेटे फिर...
दिलवाऊंगा सब कुछ मैं तुझे


बस आज जरा सा धैर्य धरों
कल का थोड़ा इंतज़ार करों
आज हाथ ज़रा तंग हैं
मज़बूरियों से जंग हैं
कल हम वक्त मुताबिक़ होंगे
जेबों में दाम मुनासिब होंगे
बाज़ार भी अपने माफ़िक़ होंगे
और दाम भी सब वाज़िब होंगे
तुम फिर झोलियां दें देना मुझे
बेटे...
जो तुम माँगोगे ला दूंगा तुझे
 


तारीख: 01.11.2019                                    नीरज सक्सेना









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