हाँ में किन्नर हूँ


हँसते हो तुम सब मुझको देख
नाम रखते हो मेरे अनेक||
सुन्दर सुन्दर उसकी रचना 
मेरी ना किसी ने की कल्पना|| 

ईश्वर ने किया एक नया प्रयोग 
स्त्री पुरुष का किया दुरूपयोग|| 
जाने क्या उसके जी में आया 
मुझ जैसा एक पात्र बनाया|| 

तुम क्या जानो मेरी व्यथा 
कैसे में ये जीवन जीता|| 
घूंट जहर का हर पल पीता 
क्या जानो मुझपे क्या बीता ||

नारी मन श्रृंगार जो करता 
पुरुष रूप उपहास बनाता 
तन दे दिया पुरुष का 
और मन रख डाला नारी का||

गलती उसने कर डाली 
तो में क्यों होता शर्मिंदा
भोग रहा हूँ में ये जीवन
रह सकता हूँ में जिन्दा||

तुमको तो दीखता है तन
मुझको तो जीना है मन||
हँस देते सब देख मुझे 
हाय मेरी ना कभी लगे तुझे||
 


तारीख: 20.10.2017                                    सरिता पन्थी









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