थोड़ा तुम बदलों
थोड़े हम बदल जातें है
मुक्तसर इस जिंदगी में हम कुछ और आगे निकल जाते हैं
जो थे शिकवें ,शिकायतें
सब यही छोड़ जातें हैं
जिंदगी के एक मोड़ पर एक साथ निकल जातें है
यादें पर बैठी धूल को चलों आज फिर हम साफ कर आतें हैं
थोड़ा तुम बदलों
थोड़े हम बदल जातें है
जो गुरुर था हमें ना झुकने का
खैर छोड़ों हम एक साथ झुक जातें हैं
एक अधुरी कहानी को एक हसीन मोड़ दे जातें है
जो हाथों में बाकी थी तुम्हारें हाथों की छुअन
चलों फिर से उसे एक बार महसूस कर आते हैं
जो ख्वाबों के कैनवास पर बिखरें थे रंग
उससे कुछ हसींन तस्वीर बनाते है
थोड़ा तुम बदलों
थोड़े हम बदल जातें है |