इंक़िलाब ज़िन्दाबाद

एक सहर, बेतिया बाजार में
सब लोग खड़े और भीड़ लगी

गोली चली, एक लाश गिरी और दो भागे
पूछा गया की कौन मरा ?

इंक़िलाब ज़िन्दाबाद ! (आवाज़ दूर से)

गंडक मे फिर दो कूदे
डूबे-तैरे छपरा पहुँचे

एक दरवाजे पे फिर दस्तक हुई
पूछा गया की कौन आया ?

इंक़िलाब ज़िन्दाबाद ! (आवाज़ इशारे से)

फिर याद आया साइकल छूटी
कपड़े छूटे छूटे सुराग

एक ने दूजे से फिर पूछा
पकड़े गये तो क्या होगा ? 

इंक़िलाब ज़िन्दाबाद ! (आवाज़ साहस से)

मुज़फ़्फ़रपुर के कोर्ट रूम मे 
जनता उमड़ी धक्कम धुक्की

फिर बहस हुई सचि-झूठी
जनता पूछी क्या फ़ैसला हुआ ?

इंक़िलाब ज़िन्दाबाद ! (आवाज़ फिक़्र से)

ज़ंजीरों मे बाँध उसे
ले आए सेंट्रल जेल गया

उसकी आभा से सब औत प्रोत
पूछे कहाँ वीरता का स्रोत ?

इंक़िलाब ज़िन्दाबाद ! (आवाज़ आस्चर्य से)

फिर एक सवेरा शांत हुआ
कवि हृदय आक्रांत हुआ

स्वराज कहाँ गुमनाम हुआ
क्या पुत्र .व्यर्थ बलिदान हुआ ?

इंक़िलाब ज़िन्दाबाद ! (आवाज़ दर्द से)

महीने साल दसक बीते
फिर हिन्दुस्तान आज़ाद हुआ

एक रोज डाकिये से पत्र मिला
क्यूँ पता देख मैं मुस्काया ?

शहीद "बैकुंठ शुक्ल" नगर !
इंक़िलाब ज़िन्दाबाद ! (आवाज़ फख्र से)


तारीख: 29.10.2017                                    विष्णु पाठक









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