इश्क़ की राह

 

शहर में एक नयी राह बनी थी 'इश्क़ की राह',
जहां पर सबको चलता देख मुझे अच्छा लग रहा था,
क्योंकि सभी खुश नज़र आ रहे थे उस राह पर चलते।
तो एक दिन मैं भी 'इश्क़ की राह' का राही बनकर निकली,
जहां पर एक राही अकेला था और टूटा हुआ सा था,
जिसको आगे का सफ़र तय करने के लिए,
एक साथी कि ज़रुरत थी तो उसने मेरा हाथ थामा,
और कहने लगा,


कि आगे का सफ़र मुझे तुम्हारे साथ तय करना है,
अब मैं थी इस राह कि नयी मुसाफिर,
जिसने दिल से सोचकर आगे का सफ़र,
उसके साथ करने के लिए राज़ी हो गई।
एक दिन अचानक वो राही मुझे अपने इश्क़ में डाल कर,
जो राह थी हम दोनों की उस मंजिल तक पहुंचने की,
जहां हम होते और हमारी निशानियां होती,
बीच राह पर ही उसके कदम थक जाते हैं,
और इश्क़ कि राह से मुड़ जाना ही उसने ठीक समझा,।
और छोड़ जाता है बीच राह पर मुझे तन्हा।


जहां आगे का रास्ता तय करने वाले तो बहुत थे,
मगर उसकी राह बदलते ही,
मेरे भी क़दम उस राह पर आगे नहीं बढ़े,
और उसी बीच राह से मैंने भी अपने क़दम पीछे कर लिये,
और बहुत दूर हो गई 'इश्क़ की राह से।
और इस तरह दोनों ही,
इश्क़ पर राह पर नहीं चल सके और एक के,
राह बदलते ही दोनों की राहें बदल गयी।


तारीख: 23.09.2019                                    वरुणा सैनी









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