जब जब बारिश आ जाती है


कहानी कौंध जाती है भीतर,
एक आग भभककर लग जाती है,
यहाँ घाव कुरेदते नोक तीर से
जब जब बारिश आ जाती है।

बूँद बूँद अश्कों का गिरना
शायद वो बादल रोता है,
टूटे-बिगड़े रिश्तों का दर्द समझ
अश्कों से अश्क़ वो धोता है।

सावन आता है करने भरपाई
गम में ख़ुशी के अश्क मिलाने को,
करने शायर के जख्म को ठंडा
ये कहीं दोष न दे दे ज़माने को।

हवा में उड़ते बादल कभी जो,
रास्ता बदल मुड़ जाते है,
भांपते है जब जख्म धरा का
बस वहीँ पिघल गिर जाते है।

न धरती जरा पिपासु होती,
न जख्म कोई पुराना होता।
न ही कभी बरसते बादल,
न ही बिलखता फिर शायर कोई

न मौसम कभी सुहाना होता!


तारीख: 01.07.2017                                    राम निरंजन रैदास









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