जग में वीर बन कर जियो 'तुम'

जब घिर आए घनघोर घटाएं
गहन तिमिर के जलधर छाए 
चांद-तारे धुंधलके में छिप जाए 
पवन गति शिथिल हो थम जाए 
तब साहस धरो-चलो 'तुम' 
जग में वीर बन कर जियो 'तुम' 

अश्रु-स्वेद-रक्त बहा दो
बर्फिली-तीक्ष्ण धार को तलवार बना लो 
उद्धत बयार को पाषाण बना लो 
जीवन के सब अवसाद मिटा दो 
अडिग, निर्लिप्त, स्वच्छंद बन-चलो 'तुम' 
जग में वीर बन कर जियो 'तुम'

साहस अब छूटे न कहीं 
संकल्प अब टूटे न कहीं 
तू आग बन,तू अंगार बन
चल अपने लक्ष्य पथ पर
शांत, दृढ़, अविचल बन- चलो 'तुम'
जग में वीर बन कर जियो 'तुम'

असफलता चाहे मिलती रहे
तू निर्मल धार बन बहता चल 
निज स्वप्न की खातिर अब 
तु सुख-चैन लुटाए चल
सिर उठाए, कदम बढ़ाए-चलो 'तुम'
जग में वीर बन कर जियो 'तुम'

जब अन्याय तुम्हें सताने लगे 
बन कर तलवार दबाने लगे 
फिर तोड़ मोह के बंधन तू
मिटना सही, पर झुकना नहीं 
शस्त्र बन कर-चलो 'तुम'
जग में वीर बन कर जियो 'तुम'


तारीख: 03.11.2017                                    आरती









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