जिंदगी का चेहरा

इस धरती के कण-कण में ,आते-जाते क्षण-क्षण में  
बदलते हालात में , हर इंसानी जज्बात में  
कभी छाँव में, कभी धूप में, जाने किस-किस रूप में
पल-पल बदलते मायनों में, रंग रंग के आइनों में
कभी स्याह और कभी सुनहरा देखा है 
रंग बदलता जिन्दगी का चेहरा देखा है       

बसंत की बहार में, शीतल मंद बयार में 
सावन की फुहार में, कुदरत के छलके प्यार में  
धरती माँ के परिवार में, आकाश के विस्तार में 
सूरज चंदा और बादलों के सुन्दर संसार में 
आशाओं का नया सवेरा देखा है  
खिलखिलाता हुआ जिंदगी का चेहरा  देखा है

अंतहीन यातना जैसे वर्षा के इंतजार में
सूखे की भीषण मार में, भूखों के हाहाकार में 
अश्रुहीन मौन सी सिसकी, निःशब्द चीत्कार में
सर्वनाश के इस तांडव में, जिन्दा नरकंकाल में 
अंतिम उखड़ती साँसों पर मृत्यु का पहरा देखा है 
दम तोड़ती हुई जिंदगी का चेहरा देखा है 

दौलत के कारागारों से, इनमें कैद बहारों से 
हंसी के खोखले ठहाकों से, नकली धूमधडाकों से 
हर छलकते जामों से, मेकअप जैसी मुस्कानों से  
नजरों के इस धोखों से, सच के बंद झरोखों से 
दूर कहीं पर खुशियों को, छिटका-छिटका
ठिठका-ठिठका और ठहरा-ठहरा देखा है
दीपक के नीचे रोज अँधेरा देखा है 
कुछ अनजाना, कुछ पहचाना जिंदगी का चेहरा देखा है


तारीख: 20.10.2017                                    सुधीर कुमार शर्मा









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