कैसे मे समझाऊ उसको,
जो हार मानकर बैठा है
कैसे मे बतलाऊ उसको ,
जो सब छोड-छाड़ कर बैठा है
कैसे मे समझाऊ मे उसको,
जो कदम थाम कर बैठा है
कैसे मे बतलाऊ उसको ,
जो जीत, हार कर बैठा है
हाँ जीत ,हार कर बैठा है
कि..........
ये वक़्त नही है छुपने का
ये वक़्त नही है रुकने का
ये वक़्त नही है थमने का
ये वक़्त है आगे बढ़ने का
ये वक़्त है चलते रहने का
क्या पता आखिरी हो ये सफर
क्या पता आखिरी हो ये कदम
क्या पता खड़ी हो मंजिल ही खुद
दरवाजे की चौखट पर
हाँ दरवाजे की चौखट पर.
तुम रुको नही तुम थको नही
तुम पानी हो बह जाओगे
बंद पड़ी दीवारो मे भी तुम
सुराख नया सा पाओगे.