काश

उन आँखों की गहराइयों में जब उतरता हूँ तो ख्याल  आता है,
काश ! कि मुझे तैरना न आता और,
मैं डूबता, बस डूबता चला जाता।

मुझे देख वो चेहरे पे आई मध्धम सी मुस्कान का मतलब,
काश ! कि मैं समझ पता और,
अपने दिल के कश्मकश के तूफ़ान से पार पाता।

तेरे पैरों को चूमती पाजेब की खनक की हरेक धुन, 
काश ! कि अपने ज़हन में उतार पाता,
फिर मारवा और भैरवी का मुकम्मल इंतज़ाम हो जाता।

तेरी तकलीफ रुपी बारिश की हर बूँद की खातिर, 
काश !  कि मैं गोवर्धन उखाड़ ले आता  और,
तेरे  प्रसंशा के आलिंगन  से  बार बार मरता, और जी जाता।
  
यूँ तो नदियां अनंत हैं, अनगिनत है, पर 
काश ! कि तेरी दरिया के अमृत का दो बूँद नसीब हो जाता  
फिर इस जीवन से कोई शिकवा कोई शिकायत न रह जाता।

काश !  कि एक आशियाना होता छोटा सा, एकांत सा, 
और बस तू मुझे , मैं तुझे देख पूरी उम्र निकाल  जाता।


तारीख: 20.06.2017                                    अतुल प्रकाश









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