कवि लिखता है

जब कभी समाज से विरक्त होकर,
खुद की संगत में रहता है,
कवि लिखता है ।

भूत कर्मों को याद करके,
जब-जब भीतर से जलता है,
कवि लिखता है ।

वीर-वीरांगनाओं की बातें सुनकर,
जब-जब शेरदिल बनता है,
कवि लिखता है ।

जब कभी अन्याय को देखकर,
उसका अंतर विद्रोह करता है,
कवि लिखता है ।

जब कभी प्रेयसी के आवागमन पर,
प्रफुल्लित-व्यथित होता है,
कवि लिखता है ।

प्रकृति की सुन्दरता देखकर,
जब ध्यान एकत्रित करता है,
कवि लिखता है ।

जब कभी भक्ति में डूबकर,
अपने आराध्य को याद करता है,
कवि लिखता है ।


तारीख: 22.06.2017                                    विवेक कुमार सिंह









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