बाकी है ,
रत्तीभर मुस्कान
आँचल-भर शोक-दर्द
अभी बाकी है ।
भारत के स्वर्ग का
उजड़ना
अखरता है ,
गुमनाम अपनों को ढूंढते देख ,
बिलखता है मन ;
बरौनियाँ ब्याकुल हैं
पर सूखी आँखों में पानी कहाँ ?
किस पुण्य कर्म का फल
मांगते हैं हर रोज ,
अपने तैंतीस करोड़ देवी-देवताओं से ;
जो खिलवाड़ किया
हिमालय के आभूषणों से ,
किया भी तो
नव हिमालय को ,
भेदने का दुस्साहस ।
तो रहती है इतनी भीड़
बाबा केदार के पास ,
उनकी देहरी पर
मांगते रहते हैं आशीर्वाद ;
जोड़ते है हाथ
धोते रहते हैं इस तरह ,
अपने मन और आत्मा का मैल ।
व्यथित मै "अकेला" नहीं हूँ
मेरी डायरी के पन्ने ,
बहते हुए अभी
हिलोरे मारती मन्दाकिनी में ,
खून-पसीने की फसल
दादी के जमा किये हुए पुराने ,
मटमैले रंग के सिक्के
पाँचवीं जमात का अंक-पत्र ,
धूमिल हो गया है ।
पर बाकी है
अतुल्य-प्रेम ,
गिरकर उठने का संकल्प
अभी बाकी है ।