खिलौना

कभी थपकियाँ देकर सुलाती है, 
तो कभी प्यार से सहलाकर जगाती है । 
कभी ममतामयी स्वहस्तों से खिलाती है, 
तो कभी एक पुचकार से सारे दुःख-दर्द भगाती है ॥ 

कभी पीछे से आकर, 
कर लेती है आलिंगन । 
तो कभी सामने से आकर, 
ले लेती है चुम्बन ॥ 

मैं चाहे कितना भी बड़ा हो जाऊं, 
उसके समक्ष सदा बौना ही रहूँगा । 
सारी दुनिया भले ही मुझे इंसान समझे, 
अपनी माँ के लिए मैं एक खिलौना ही रहूँगा ॥
 


तारीख: 20.06.2017                                    विवेक कुमार सिंह









नीचे कमेंट करके रचनाकर को प्रोत्साहित कीजिये, आपका प्रोत्साहन ही लेखक की असली सफलता है