मै इतना महान नहीं

कर्म करो, मत बैठे रहो
गर आय संकट, ना घबराओ
फल की चिंता छोड़ो भी
बस कर्म करो, और करते रहो
देता उपदेश, सोचूँ मै हूँ श्रेष्ठ,
पर इतना भी ना इतराओ।
झांको अन्तर्मन में भी
थोड़ा सा खुद को अजमाओ।
है राह दिखाना कितना सरल, अनुसरण करना आसान नहीं,
सर्वत्र ज्ञान बाटा मैंने, पर स्वयं का मुझको ज्ञान नहीं
मै इतना महान नहीँ।

लिखता हूँ वीर बहादुरो के क़िस्से
बताता हूँ धीर धरने के कई नुस्खे 
मेरी कलम राह है दिखलाती 
सत्य-अहिंसा के मार्ग की,
कहानियाँ भी कहती है
मर्यादापुर्षोत्तम राम की।
बढ़ाता हूँ साहस, पर मुझमे नामोनिशान नहीं
ज्ञान देने से बढ़कर, दूजा सरल कोई काम नहीं ,
मै इतना महान नहीं।

क्या सिर्फ पढ़ने में अच्छा लगता है,
त्याग, बलिदान का कमल बस बंद किताबो में खिलता है
प्रतियोगितावादी युग में अपेक्छाए सब व्यर्थ है,
आजकल सब स्वयं की इच्छाओ से त्रस्त है,
"परहित धर्म सरिस नहीं भाई" कहते वेद-पुराण यही
उपदेश देना कितना सरल, कुछ कर दिखाना आसान नहीं
मै इतना महान नहीं।
मै इतना महान नहीं।


तारीख: 19.09.2017                                    शुभम सूफ़ियाना









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