हाँ हाँ हाँ ,,,,,,
मैं सब सुन रहा
तुम्हारें मौन को भी सुन सकता हूँ,,,,
जो मेरे कानों में चीख बनकर गूजताँ है।
तुम्हारी आँखें जो कुछ ना कहते हुए भी,,,इशारों में सब कुछ कह देती है।
तुम्हारी मुस्कुराहट हाँ यही तो जो मुझे जीने का साहस देती है,,,,,,
ये माथे की दमकती बिंदी, जैसे तुम्हारे लिए बनी हो ! तुम एक दूसरे को संपूर्ण करते हो।
ये घने गेसुए, तुम्हारे तब्बसुम को छू कर इतरा जाते है! मुझे क्यों ना रश्क हो ।
यही है मेरा मौन का कारण,पर में सुन सब रहा हूँ।
तुम्हें कुछ कहने की जरूरत नही है,बस मेरे साथ रहो।
में सुन लूगाँ तुम्हें समझ लूगाँ ,,,,और जिदंगी को जी लूगाँ