इस चेहरे की मासूमियत साफ झलकती है तस्वीर से
अंधेरे में भी एक उजास हो जैसे
निगाहों का बाँकपन भोलेपन से मिलकर निखर रहा है
जैसे सादगी की जिन्दा मूरत हो
पर मैं साफ देख सकता हूँ
बचपन को जाते हुए तुमसे दूर और
यौवन की दहलीज पर पडते तुम्हारी कदमों के निशां
मैं तुम्हारे जज्बात तो नहीं पढ. सकता मगर
इतना अंदाजा लगा सकता हूँ
कि तुम शैने शैने सयानी हो रही हो,
बचपना खो रही हो,
अब खुद को देख कर यूँ केवल तस्वीर ना सजाया करो,
इस खुशनुमाँ मगर भागती जिन्दगी में
कुछ वक्त अपनों के लिए भी बिताया करो
मंद मंद हँसी इन लबों पर भी सजाया करो
उनके लिए जो फिक्रमंद है तुम्हारे लिए
सिर्फ तुम्हारे लिए।