मेरा गाँव

मेरे जहन में आज भी मेरा प्यारा गाँव रहता है,
लोग यहाँ के रंग रंगीले, प्यार रगों में बहता है,
मेरे जहन में आज भी मेरा...

सहर जहाँ की मध्धम मध्धम, धूप जहाँ की रेशम,
छाँव जहाँ की कोमल ममता, टुकड़ा भारत देशम्।
महक जहाँ की मादक-संदल, पावन पवन समीरी,
मावठ सावन रिमझिम करते, कजरे बादल केशम्।।

साँझ सुहाती, भोर है भाती, मीठी-रात दुपहरी,
बूढ़ी-बातें, बच्चा-टोली, बनती आम की छहरी।
खाट विराजे संग सयाने, पंचायत तब जारी,
बाल-लंगोटी कैरी चाखत, जामुनिया अति कारी।।

पीली सरसों प्यारी प्यारी, दलहन की हरियारी,
चुन-चुन डलिया लाती गुजरिया, शाक-फूल-तरकारी।
नत-नत धरा बिछाएँ फलियाँ, शोभित पुष्प खिलाएँ कलियाँ,
ओस मधु बिखरी चहुओरी, चन्द्र-मयंक उजियारी।।

हरा भरा, हर द्वार खड़ा, हर माह में सावन कहता है,
मेरे जहन में आज भी मेरा प्यारा गाँव रहता है।

नव युवा, पुलिया के यारी, लोकगीत गुंजन करें नारी,
चौपाले, चरवाह चर्चामय, गउएं खायें फसलें सारी।
नहर नदी में डुबका-डुबकी, बाग़ बगीचा लुपका-छुपकी,
सांझ ढले जब घर को लौटे, अम्मा देवें गारी।।

भोजन पा चढ़ जाएँ अटरिया, राम-नाम अरु कहत संवरिया,
कुछ पसरे अँगना में माझी, ओढ़े सिर से पैर चदरिया।
दादी नानी किस्सा कहतीं, बूझ-पहेली नदियाँ बहतीं,
किस्साओं में राजा होते, तारों में भी परियां रहतीं।।

चाँद को रोटी, तारे मोती, बच्चा बच्चा कहता है,
मेरे जहन में आज भी मेरा प्यारा गाँव रहता है।

फागुन होली रंग-रंगोली, हाट डगर रम जाए टोली,
सखियाँ पूंछत पुन पुन सारी, कहा कहा लाई हमजोली।
दहन होलिका कर नर नारी, फाग तान छिड़कर तब बोली,
भोर भए सब भंग-रंग-संग, हिल-मिल लोग मनाएँ होली।।

सावन की रुत रिमझिम छाती, याद बहन को भ्रात की आती,
कुछ तो तकती राह मिलन की, कुछ लिखती सजना को पाती।
बाग हिंडोले पड़ गए फूलन, संग सहेली जाएं झूलन,
कुछ गातीं ऋतु गीत मिलन के, कुछ गावें बरसाती।।
रक्षाबंधन कर में भाता, प्रेम प्रतीक भगिनी संग नाता,
जब बारिश की टिप टिप होती, दुख दरद सबहिं मिटा जाता।।

मास अमावस आई दीवाली, रात अंधेरी काली,
बर्तन, झालर, दीप, रंगोली, हाट घाट पर लाली।
कुछ पर मिलते खील-बतासे, कुछ पर आतिशबाज़ी,
पोशाकें अति ही शोभामय, चमकन रेशम वाली।।
पूज गजानन, रमा-लक्ष्मी, जलती दीप की डाली,
खेल, पटाखे, लड़ी, फुलझड़ी, कहते आई दीवाली।।

हर त्यौहार करता पुकार, यहाँ प्यार का झरना बहता है,
मेरे जहन में आज भी मेरा प्यारा गाँव रहता है।

गाढ़े बंधन बंध बढ़ाय, दु:ख-सुख-विपदा संग सहाय,
  मन संचय बना प्रेम समंदर, धन संचय दरिया में जाय।।
बैर, द्वेष, बेईमानी, कपट, छल, न इस गाँव की रीति,
ढाई आंखर जाने मनुआ, प्यार, प्रेम और प्रीति।।

हो गर जनम तो इस धरती पर, जीता, मरता कहता है,
मेरे जहन में आज भी मेरा प्यारा गाँव रहता है।


तारीख: 30.06.2017                                    एस. कमलवंशी









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