सपना था जो कही खो गया
कल तक था मेरा
आज बेगाना जैसे हो गया ।
कशिश कितनी थी, आस कितनी
ज़िन्दगी को ज़िन्दगी जीने की
फिर तलाश कितनी ।
मन के अँधेरी में जैसे
गुमसुम - सा सो गया
चंचल था सपना
गुमशुदा जैसे हो गया ।
बड़ा ही मोहक था
ज़िन्दगी की जैसे झलक था ।
रंग न जाने थे कितने समाये
मोहक, मदहोश
जाने कितने राग सुनाये।
अनजाने में ही अपनापन जैसे हो गया
लुभावन था सपना
फ़साना जैसे हो गया ।
खोजता हूँ आज भी स्वपनलोक में कही
रहस्य जीवन का
हर राज़ दफ़न वहीँ ।
जिस्म से साया जैसे दूर कहीं हो गया
तिलिस्मी था सपना
अंधकार जैसे हो गया ।