मेरे पापा

बहूत से लोग इस दुनिया मे माँ पर बोल कर चले गए,
घर के गौरव पर सबने बोला और सब सुन कर चले गए,
पर अस्तित्व उस गौरव का पापा ने बनाया है,
इसे बात को अनदेखा कर के अनजान बन कर चले गए।

कहाँ से लाते थे वह संयम हम सब को संभालने का,
मुट्ठी भर पैसों मे झोली भर खुशियाँ लाने का,
कभी नहीं हारे वो, ना हारना हमे सिखाया है,
पर घमंड और आत्म विश्वास मे फर्क जरूर बताया है।

आज बहुत दूर हूँ पापा मैं,
पर फिर भी सबको कहती हूँ,
जब भी चोट लगे मुझको मैं तो पापा-पापा करती हूँ।

प्यारी मुझको माँ भी है,
पर ना जाने गिरने पर सबसे पहले याद तुम्ही को करती हूँ,
जब भी चोट लगे मुझको मैं पापा-पापा करती हू।

सब कहते है नाटक है यह झूठ-मूठ का दिखलावा,
पर आज भी जब सपनो मे डर जाया करती हूँ,
आँख खोल कर सब तरफ तुमको ही ढूँढा करती हूँ।

मैं भी माँ बन गयी हूँ पर तेरी ही मैं बेटी हूँ,
गोद मेरे बेटा है पर तेरी गोद को तरसती हूँ।
सब कहते है उम्र हो गयी,
मुझको बड़ा  अब होना है,
पर तेरी आँखो मे  जब भी देखूँ,
छोटी गुड़िया ही दिखती हूँ।

माँ ने नहीं पर तुमने मुझको बेटा एक दिन बोला था,
बेटे से ज्यादा प्रेम और विश्वास देकर मुझे इसे दुनिया मे तोला था ,
फिर ऐसी क्या भूल हुई जो बेटे को पास रख मुझे डोली मे विदा किया।
सदा खुश रहो कहकर पल मे मुख मोड़ लिया।

फिर भी, सच कहती हूँ पापा मेरा विश्वास करो ,
आज भी जब चोट लगे मुझको मैं पापा-पापा करती हूँ।
पापा-पापा करती हूँ।

 

 


तारीख: 15.06.2017                                    मनीषा श्री









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