मेरी बेटी

हर पल मैं ये सोचता हूँ, क्या करूँ कि मेरी बेटी मुस्कुराएगी।
जब बड़ी हो जाएगी, क्या तब भी मेरी हँसी पे खिल जाएगी।
जब हाथ फेरती है सर पे उसे बाँहों में भर लेने का दिल करता है।
क्या मैं जी पाउँगा जब वो मुझसे दूर चली जाएगी।

जब कंधे पे चढ़ जाती है मेरा कद और भी बढ़ जाता है।
जब मेरी गोद में सो जाती है वो लम्हा वहीं थम जाता है।
मेरी बेटी मेरी जान है मेरे गुरूर की पहचान है।
जब वो मुझे चिढ़ाती है दिल मेरा भी मुस्कुराता है।

हर पल मैं ये सोचता हूँ, क्या करूँ कि मेरी बेटी मुस्कुराएगी।
क्या वो भी मेरी तरह ज़िन्दगी के सवालों में गुम जाएगी।
बहोत बेबस महसूस होता है जब उसकी ख्वाहिश पूरी नहीं कर पाता हूँ।
क्या अपने दिल की हर एक बात मुझे वो बेझिझक बताएगी।

वो जब नज़र नहीं आती है दिल मेरा घबराता है।
उसके साथ खेलने को हर थकान भूल जाता है।
मेरे सारे सपने पूरे हो जाते हैं जिस पल वो मस्कुराती है।
नासमझी की उसकी बातों में भी दिल मगन हो जाता है।

हर पल मैं ये सोचता हूँ, क्या करूँ कि मेरी बेटी मुस्कुराएगी।
वो मासूम शैतान क्या बड़ी होकर समझदार हो जाएगी।

उसकी यादें रुला देती हैं मुझे उसके पास न होने पर।
क्या वो सच में एक दिन मुझे छोड़कर चली जाएगी।


तारीख: 18.10.2017                                    विवेक सोनी









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