कमी तो तेरी
मेरी जिंदगी में
"रब" भी पूरी नहीं कर पाया.....
क्योंकि हमें तेरी सुरत में नहीं
तेरी सिरत में "रब" नज़र आया.....
यूं तो मुलाकात हुई थी एक दिन "रब" से
तुझसे हमसफर आखिरी मुलाकात के बाद
पूछ बैठा "रब" हमसे क्यों मुस्कुरा रहा तू
अपना दपर्ण टूट जाने के बाद..............
चेहरे पर जो खिली उसके मुस्कान है
मैं जानता हूँ "हुई तेरी दुआ इस पर कुर्बान है
लेकिन तुझे ऐसा करके क्या मिला
अपनी कश्ती डुबाकर तुझे कौन सा साहिल मिला
यूं तो "रब" जानता था
मेरे हृदय में क्या है पहचानता था
फिर भी शीश झुकाकर मैं "रब" से कह आया
जब जाना "रब" ने उसने भी शीश झुकाया
आखिर उसको भी तेरी सिरत में
अपना ही चेहरा नज़र आया ................
कमी तो तेरी मेरी जिंदगी में
"रब" भी पूरी नहीं कर पाया....मिला था "रब"